शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

हर एक विद्यार्थी के अन्तर्मन में जीवित हैं डॉ. कलाम ...


          27 जुलाई 2015 को मिसाईल मैनऔर जनता के राष्ट्रपतिके नाम से जाने जाने वाले अंतरिक्ष विज्ञान के सिरमोर एवं युवाओं के महान प्रेरणास्रोत डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के निधन से न केवल भारत को बल्कि सम्पूर्ण विश्व को जो अपूर्व क्षति हुई है, उस गमगीन माहौल में हर कोई मायूस हो बैठा था। यहाँ तक कि इस अपूर्व क्षति की संवेदना  व्यक्त करते हुए भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, दलाई लामा - तेनजिन ग्यात्सो, भुटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोेइराला, पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन एवं प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसीलो बम्बनग युधोयोना, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक, सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सियन सूंग, संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नहयान तथा रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन सहित सम्पूर्ण विश्व के जाने-माने अन्तराष्ट्रीय व्यक्तित्वों ने डाॅ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के निधन पर उनको श्रद्धांजली देते हुए उनके प्रति जो दुःख, शोक एवं अपनी संवेदना व्यक्त की है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 27 जुलाई 2015 को सम्पूर्ण विश्व ने कितना बड़ा व्यक्तित्व खो दिया। 
            आज 15 अक्टूबर 2015 का दिन उनके निधन के बाद प्रथम जयंती के रूप में सम्पूर्ण विश्व मनाने जा रहा है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की लगभग 84 वर्षों की जीवन यात्रा सम्पूर्ण मानव जगत के लिए अनमोल और प्रेरणदायी रही है, आपने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव मात्र के लिए ही व्यतीत किया। एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेकर विकट परीस्थितियों के बावजूद भी अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन कर अंतरिक्ष अनुसंधान में अभूतपूर्व योगदान देकर एवं भारत के राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर मिसाईल मैनऔर जनता के राष्ट्रपतिका गौरव प्राप्त किया, आपकी यह प्रेरणदायी जीवन यात्रा युगों-युगों तक सम्पूर्ण विश्व के लिए एक मिशाल सिद्ध होगी। 

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का संक्षिप्त जीवन परिचय -
         आज ही के दिन 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम् (तमिलनाडू) के धनुषकोडी गाँव में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे असाधारण प्रतिभा के धनी मिसाईल मैनऔर जनता के राष्ट्रपतिके नाम से जाने जाने वाले भारत के 11 वें निर्वाचित राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम सम्पूर्ण विश्व के प्रेरणास्रोत हैं। जहाँ आपके पिताजी परिवार के भरण-पोषण के लिए मछुआरों को नाव किराये पर देकर खर्चा चलाते थे, वहीं आपने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अखबार वितरण का काम भी किया। अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में निरन्तर कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं का प्रतिनिधित्व किया। यहाँ परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसी यान से जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह को अंतरिक्ष में सफल प्रक्षेपित कर भारत को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बनाया। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत को विश्व परिवेश में अहम पहचान दिलाने वाले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने स्वदेशी तकनीक पर मिसाईल बनाने का कार्यक्रम तैयार कर पृथ्वी, त्रिशूल, अग्नी, आकाश, नाग के अलावा भारत व रूस के संयुक्त प्रयासों से ब्रह्मोसनामक सुपरसोनिक क्रूज मिसाईल तैयार की। 
’’इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, 
जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं। ’’
                                                                                                                                               - डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

                आपको भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, सिंगापुर आदि देशों की चालीस से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान करने के साथ ही भारत सरकार ने ù भूषण’, ’ù विभूषण’, ’वीर सावरकर पुरस्कार’, एवं भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया है। वहीं स्वीटजरलैंड सरकार ने 2005 में आपके स्वीट्जरलैण्ड आगमन पर 26 मई को विज्ञान दिवसघोषित किया है तथा नेशनल स्पेस सोशायटी ने आपके अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित परियोजनाओं के कुशलतापूर्वक संचालन और प्रबंधन के लिए आपको वाॅन ब्राउन अवार्डसे सम्मानित किया।
                आपका सम्पूर्ण जीवन एक सफल वैज्ञानिक, आविष्कारक, राजनैतिक चिंतक, एवं प्रभावी शिक्षक के रूप में सम्पूर्ण विश्व के लिए समर्पित था। आपने जाति, धर्म, और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर सम्पूर्ण विश्व को सर्वधर्म समभाव की शिक्षा दी है। आपने जहाँ एक ओर अपने धर्म की श्रेष्ठ पुस्तक कुरान का गहन अध्ययन किया वहीं दूसरी ओर भग्वद्गीता जैसे हिन्दू धर्म के महान धर्मग्रन्थ का अध्ययन किया आपने अपने प्रेररणदायी उद्बोधनों से विश्वभर में कई विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में हजारों विद्यार्थियों को संबोधित कर सही राह दिखाई है तथा साहित्य जगत में अनेक प्रेररणादायी, चिंतनपरक एवं आत्मकथात्मक रचनाएं एवं पुस्तकें लिखकर अपना असीम ज्ञान का भण्डार खोलकर जिज्ञासु विद्यार्थियों के अन्तर्मन में ज्ञान, सुचरित्र एवं सुसंस्कार के जो बीज बोये हैं वो समय-समय पर अंकुरित होकर उनके जीवन में विशाल वटवृक्ष की भाँति विकसित होंगे एवं आपकी ही प्रेरणा से सम्पूर्ण विश्व में ख्याति प्राप्त करेंगे।
                यद्यपि आपके निधन से सम्पूर्ण विश्व को अपूर्व क्षति अवश्य हुई है तथापि आपके 84 वर्षों का संघर्षपूर्ण जीवन की प्रेरणा सम्पूर्ण विश्व के हर एक विद्यार्थी के अन्तर्मन में युगों-युगों तक जीवित रहेगी।
''सपने वो नहीं जो रात को सोते समय नींद में आये,

सपने तो वो होते हैं जो रातों में सोने नहीं देते।''
                                                                                                                                                                                    - डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
                                                    
                                                                                                                                                                                         - सुखदेव 'करुण'

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

साईबर क्राईम - ’देश के लिए महान चुनौति’

                  वर्तमान तकनीकी युग में एक ओर हमारा राष्ट्र ‘डिजिटल इंडिया’ बनने जा रहा है वहीं दूसरी ओर इस डिजिटलाईजेशन के दौर में इन्टरनेट पर अपराध की घटनाएं दिन दौगुनी रात चैगुनी बढ़ती जा रही है।
क्या है साईबर क्राईम -
               साईबर क्राईम या साईबर आतंकवाद का आविर्भाव 1980 के दशक में हुआ सन 2000 तक साइबर आतंकवाद में रूची बढने लगी और धीरे-धीरे विश्व के 65 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता इसके शिकार होने लगे और भारत में तो यह आंकड़ा 75 प्रतिशत को भी पार कर चुका है। हालांकी भारत में अब तक ज्यादा मामले दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चैन्नई जैसे महानगरों में ही सामने आये हैं फिर भी अब यह आमजन तक को प्रभावित करने से भी वंचित नहीं रहा है। इसके अन्दर कम्प्यूटर प्रणाली एवं इंटरनेट का प्रयोग कर सूचना तंत्र को कमजोर करते हुए विभिन्न विघटनकारी गतिविधियों को अंजाम देना, आमजन की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित करते हुए उनको भयभीत करना आतंकवादी समूहों द्वारा अपनी गतिविधियों के संचालन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग कर कम्प्यूटर तंत्र, नेटवर्कों एवं दूरसंचार प्रणाली के प्रयोग से जानकारी का आदन-प्रदान किया जाना इलेक्ट्रोनिक तरीके से धमकिया देना आदि शामिल है।
                  आए दिन सोशल साईटों पर किसी व्यक्ति विशेष या किसी सामाजिक, धार्मिक या राजनैतिक संगठन किसी राष्ट्र पर आपŸिाजनक एवं अपनाजनक टिप्पणियां करने ई-मेल द्वारा धमकी भरे संदेश प्रेषित करने इन्टरनेट अभिलेखों का दुरूपयोग करने, जाली वेबसाईटें बनाकर ठगी करने, प्रतिबंधित उत्पादों की आॅनलाईन बिक्री करने से संबंधित विभिन्न घटनाओं में तीव्रता से बढ़ोतरी हो रही है। कई कर्मचारियांे, अधिकारियों व जन सामान्य के ई-मेल पतों पर झूठे लाॅटरी व ईनाम जीतने से सम्बन्धित ई-मेल आते हैं जिनके झांसे में आकर आये दिन हर कोई ठगी का शिकार हो रहा है।
विश्व के समक्ष महान चुनौति ‘आतंकवाद’ भी अब साईबर क्राइम का सहारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने तंत्र को गोपनीय सूचनाएं संपे्रषित करने, आमजन को इस प्रकार की गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भाग लेने हेतु प्रेरित करने जैसे कार्याें में ले रहा है। विभिन्न आतंकी संगठनों द्वारा कई व्यक्तियों को प्रताडि़त करते हुए, उनको बम और गोलियों से मारते हुए जिन्दा जलाते हुए की विडियो क्लिपें या फोटोज इन्टरनेट पर विभिन्न सोशल साईटों पर अपलोड कर आम लोगों में दहशद का माहौल बनाया जा रहा है। कई लोगों द्वारा विभिन्न प्रचलित सोशल साईटों जैसे - फेसबुक, ट्वीटर, ब्लाॅग्स आदि पर फेक आईडी बनाकर विभिन्न अपराधिक गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है।
                     एक ओर वर्तमान में टेलीफोन और मोबाईल तंत्र से अनजान लोगों द्वारा अपने आप को बैंक के वरिष्ठ अधिकारी बताकर बैंक खाताधारकों से उनके खाते से सम्बन्धित सूचनाएं एवं एटीएम या डेबिट कार्ड की सूचनाएं मांगकर उनके खातों में से लाखों रूपये उड़ा लेने की कई घटनाएं सामने आई है जिनका समय रहते हुए भी कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है। इस प्रकार के अपराध वर्तमान तकनीकि युग में आम होते जा रहे हैं। दूसरी ओर विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों/संस्थाओं की वेबसाईटों को हेक कर उनके उपयोगी एवं गोपनीय आंकड़ों को क्षती पहुँचाई जा रही है जिससे ई-बैंकिंग और ई-काॅमर्स से सम्बन्धित गतिविधियां प्रभावित हो रही है साथ ही इनका उपयोग करने से आम आदमी कतरा रहा है।
            इस प्रकार समूचे विश्व में इन्टरने एक ओर तो सुदृढ़ होता हुआ नजर आ रहा है परन्तु दूसरी ओर इस पर होने वाले अपराधों के आंकड़े भी तीव्रता से बढ़ने लगे हैं।
            इन सब परिस्थितियों से निपटने के लिए एवं इन्टरनेट की दुनिया में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने के लिए वर्तमान में सरकार द्वारा जो सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई जा रही है तथा जगह-जगह पर जो साईबर थाने स्थापित किये गये हैं वो पहाड़ रूपी साईबर क्राईम के सामने राई के दाने के समान नजर आ रहे हैं।

रविवार, 19 जुलाई 2015

बुलंद होसले राह ए मंजिल को...

बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं,
आओ तुम्हें हम, अपने क़दमों से नवाज़ देते हैं|
ऐसे मौके बार-बार मिलते नहीं हैं हर किसी को,
कम ही होते हैं, जो जिंदिगी को नये आगाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…
हर मुश्किल का सामना अपना सर उठा के कर,
ये वो लम्हें हैं, जो बाद में नाज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…
एक ही धुन पर नाच रही थी कब से जिंदिगी,
फिर अलाप दे ‘वीर’, के ख्वाब नया साज़ देते हैं|
बुलंद होसले राह ए मंजिल को आवाज़ देते हैं…

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

"कुछ इस तरह तेरी पलके मेरी पलकों से मिला दे"

कुछ इस तरह तेरी पलके मेरी पलकों से मिला दे,
आंसू तेरे सारे मेरी पलकों पे सजा दे,

तु हर घड़ी हर वक्त मेरे साथ रहा है,
हां ये जिस्म कभी दूर कभी पास रहा है,

जो भी गम हैं ये तेरे उन्हें तु मेरा पता दे,
कुछ इस तरह तेरी पलके मेरी पलकों से मिला दे,
आंसू तेरे सारे मेरी पलकों पे सजा दे,

मुझको तो तेरे चेहरे पे ये गम नहीं जचता,
जायज नहीं लगता मुझे गम से तेरा रिश्ता,

सुन मेरी गुजारिश इसे चेहरे से हटा दे,
कुछ इस तरह तेरी पलके मेरी पलकों से मिला दे,
आंसू तेरे सारे मेरी पलकों पे सजा दे...।

"फिर भी ये मोहब्बत क्यूं है"

तेरी तस्वीर मेरी आंखों में बसी क्यूं है,
जहां देखों बस उधर तु ही क्यूं है,

तेरी यदों से वाबस्ता मेरी तकद्दीर है,
लेकिन तुझे ना पा कर मेरी तकद्दीर रूठी क्यूं है,

मुझ को है खबर आसान नहीं तुझे हासिल करना,
फिर भी ये इंतजार ये बेकरारी क्यूं है,

बरसों गुजर गए मेरे तन्हाइयों में लेकिन,
मेरी बाहों को आज भी तेरा इंतजार क्यूं है,

तेरी चाहत की कसम खून के आंसू रोया हूं,
अब नहीं है कुछ बाकी फिर ये जान बाकी क्यूं है,

खत्म हुआ मेरा ये अफसाना एक बात बताऊं,
अंजाम था मालूम मुझको फिर भी ये मोहब्बत क्यूं है।

"दिल में क्यूं है"

ये दिल तुझे इतनी शिद्दत से चाहता क्यूं है,
हर सांस के साथ तेरा ही नाम आता क्यूं है,

तु कितना भी मुझसे सख्त ताल्लुक रख ले,
जिक्र फिर भी तेरा मेरी जबान पे आता क्यूं है,

यूं तो हैं कई फासलें तेरे मेरे बीच,
लगता फिर भी तु मुझको मेरी जान सा क्यूं है,

तेरी यादों में तड़पने की हो चुकी है आदत मेरी,
तेरे दूर होने का फिर भी अहसास मुझको रुलाता क्यूं है,

ये जानता हूं कि तु बहुत दूर है मुझसे,
मगर फिर भी एक आस तुझे पाने की इस दिल में क्यूं है।

गुरुवार, 11 जून 2015

लेखक के रूप में जोड़ने के लिए हार्दिक आभार

युवा कवि एवं साहित्यकार भाई - सुखदेव 'करुण'  द्वारा मुझे अपने ब्लॉग - 'कलरव काव्य संग्रह '
सुखदेव 'करुण' पर लेखक के रूप में जोड़ने के लिए हार्दिक आभार ....



राजेश कुमार सिंघल

जंग लड़ेंगे दोनों साथ जिंदगानी में
दो पल का तुम  बस मुझे साथ दो ||
कुछ तुम चलना कुछ मैं चलूँगा,
खाइयाँ ये राह-ए-मंजिल की पाट दो|| 
कुचल जायेगी क़दमों तले ये  लम्बी डगर
तन-मन में भर उत्साह चुनौतियों को मात दो||
कुछ तुम चलना कुछ मैं चलूँगा, 
बढाओ कदम, हाथों में अपना हाथ दो ||


                         साभार - राजेश कुमार सिंघल

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

नारी . . .

नारी नर की जननी है ,
इस मातृशक्ति का सम्मान करो |
अरे नारी है श्रम का पुतला,
सजा कर सिंहासन इसका आह्वान करो |

              प्रेम, करुणा और त्याग से,
              और ममत्व से क्या यह अछूती है |
               अरे यही इस ब्रह्माण्ड में,
               मानव जगत की एक अनुभूति है |
जिस कौख से जन्म लिया,
हाय! आज उसी को ठुकराते हो |
देखते हो नित नग्न अत्याचार,
स्वयं उन्हीं को अपनाते हो |

             पूछो जरा अपनी माता से जाकर,
             क्या सोचती है वो तुम्हारे प्रति हर पल |
             क्या होता है मातृ-सनेह और वत्सल,
             बता देगी वो चीर के अपना आँचल |
पूछो उस नवयोवना से जाकर,
क्यों माँ गौरी को फूल चढ़ती है |
किसके लिए मांगती है वो मन्नोतियाँ,
सर्वस्व अपना नीर सा बहती है |
            क्या हालत है आज गृहणी की,
            कितने काम वो सम्हालती है |
            पालन-पोषण तुम्हारा करके,
            बच्चों को तुम्हारे  पलती है |
कौन है जो गीले में सो जाये,
जाड़े से तुम्हे बचा करके |
है कौन जो भूखा रह जाये,
भर पेट तुम्हे खिला करके |
           बिना इसके क्या तुम यहाँ होते ?
           स्वयं इसे मत भुलाओ तुम |
           तुम्हें जन्म देकर इसने जो कर्ज किया,
           सहर्ष उसे चुकाओ तुम |
            
             - सुखदेव 'करुण'

सोमवार, 27 जनवरी 2014

कुछ आप बीती . . .

    व्यक्ति के पास जब खाली समय होता है तो उसके मस्तिष्क में तरह-तरह के विचारों का प्रवाह चलता रहता है। शांत मौसम में एकान्त में रहकर ऐसे ही लोगों का बौद्धिक सृजन इस वैचारिक मंथन के फलस्वरूप – एक कवि, चित्रकार अथवा महान आविष्कारक के रूप में होता है। बहुत से लेखक और आविष्कारकों की जीवनीयों में लिखा है कि वे एकान्त प्रिय थे। भारत के महान वैज्ञानिक, मिशाइल मेन – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने स्वयं अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्हें एकान्त पसन्द था।

सुखदेव 'करुण'

16 वर्ष की अल्पायु से ही घर से दूर अकेले रहकर इस भाव-प्रवाह में कुछ पल व्यतीत करने के अवसर लगातार मिलते रहे। परिवार के सभी सदस्यों से विशेषकर पूजनीया माता जी से दूर रहकर तन्हाई में गुमसुम यादों और ख्वाबों में इस प्रकार डूब जाता कि कभी-कभार तो घण्टों बाद भी उठने को जी नहीं करता। रात्रि को बिस्तर में लेटे हुए सूने आसमां को देखता रहता और दिल न जाने किन ख्यालों में डूब जाता। यद्यपि – मातृ-वत्सल, पितृ-स्नेह, गुरुजनों के आशीर्वाद और साथियों के प्यार ने मेरी युवावस्था को तन्हा नहीं बीतने दिया तथापि गुमसुम बैठकर चिन्तन-मनन करना मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था।

सन् 2007 में राजकीय बाँगङ महाविद्यालय डीडवाना में आयोजित ‘भव्य कवि सम्मेलन’ में पधारे अतिथि कवियों की सेवा- सत्कार का एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप मेँ जो अवसर मिला, आयोजन के कर्णधार – डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ (व्याख्याता – स्थानीय महाविद्यालय) के मार्गदर्शन में जो अनुभव प्राप्त हुआ और अतिथि कवियों का जो सान्निध्य मिला विशेषकर चित्तौङ से पधारे हुए कवि ‘सिद्धार्थ देवल’ से उनके आवास में जो बातचीत की, उसी दिन से ‘सुखा राम’ के अन्तर्मन से भी कविता का बीज अंकुरित होने लगा और तभी से वर्तमान जीवन की करुण वेदना को – सुखदेव ‘करुण’ की कलम ने उद्धृत करना आरम्भ कर दिया। यह मेरे लिये एक सुनहरा पल था जहाँ से लगातार टूटी-फूटी ‘पंक्तियों’ का सृजन होता आ रहा है। कभी युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करते शहीद हुए सैनिक की गाथा अथवा जेठ की दुपहरी में नंगे पाँव हल चलाते हलधर और दूध से सफेद (पवित्र) बैलों की जोङी की कथा सुनकर मन में जो करुणा जागृत होती, उसे कलम कागज पर उकेर देती। यद्यपि इन पंक्तियों को किसी पत्र-पत्रिका मेँ छपकर जन-सामान्य तक पहुँचने का अवसर कम ही मिले हैं तथापि आधुनिक सूचना तकनिकी के युग मेँ इन्टरनेट ( ब्लॉग्स की दुनीया ) ने काफी लोगों तक इन्हें पहुँचाया है जो खुशी की बात है। एक बार 37 हस्तलिखित कविताओं की डायरी खो जाने से काफी दु:ख हुआ। जिनमें से कुछ कविताएँ ब्लॉग्स तथा अन्य संग्रहों में पुन: मिल गई।
वर्त्तमान में कंप्यूटर शिक्षा ग्रहण करने के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थय विभाग में " इन्फोर्मशन  असिस्टेंट" पद पर 30 सितम्बर 2013 को राजकीय सेवा में नियुक्ति मिली है जिसके सहारे परिवार के भरण पोषण के साथ साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने का नया स्टेप मिल गया. आगे शिक्षा के क्षेत्र में प्रोफैशनल जॉब की खोज के साथ साथ काव्य लेखन में आगे कदम बढ़ाने के प्रयास कर रहा हूँ. आशा है प्रबुद्ध लोगों के मार्गदर्शन और आशीर्वाद तथा मित्रों के सहयोग से मुझे और सम्बल मिलेगा और चिकित्सालय में रहकर जनसामान्य की सेवा करते हुए जनमानस की मनोगत भावनाओं को उजागर करते रहने से मेरी कविता का सामर्थ्य और बढ़ेगा। अब मैं भोग-विलास में सोयी कविता ( काव्य लेखन ) को पुन: जागृत करने में  पुरजोर ताकत लगा दूंगा। -
आपका अपना
- सुखदेव ‘करुण’ - ' इन्फोर्मेशन असिस्टेंट'

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

दीपोत्सव ...

कार्तिक अमावश्या (दीपावली) की शाम आठ बज चुके हैं | मनु अपने कमरे में बैठा कुछ पढ़ रहा है, पिता अभी फ़ोन पर बात कर रहे हैं | लक्ष्मी पूजन हो गया था, गली में खूब पटाखे व फुलझड़ियाँ जलाये जा रहे हैं, मनु की माता जी खाना परोस रही है, परन्तु मनु अब भी किताब में एक टक नजर टिकाये बैठा है |

माता जी - सुनते हो जी ! खाना तैयार है .......(रुक कर ) मनु बेटे आ जाओ खाना खा लो ! तैयार है | (मनु अपने पलंग पर आधा लेटा हुआ किताब पढ़ रहा है, तिरछी नजर से माता जी की ओर देखता है ओर फिर वहीं सामने दीवार पर नजर टिका कर बैठ जाता है | )
(माता जी फिर से आवाज लगाती है) बेटे खाना ठंडा हो रहा है..... खा लो न........

(मनु अभी बच्चा  है  करीब तेरह साल का | मनु के पिता जी पोस्ट मास्टर हैं, मनु के घर की बगल में एक घास - फूस की झोंपड़ियों का बना हुआ एक घर है जिसमे एक विधवा औरत ओर उसके दो बच्चे रहते है मोहल्ले में उस छप्पर छाजन को छोड़ कर चारों ओर अच्छे पक्के मकान है यह टूटा फुट मकान मनु के पापा जी ओर अन्य मोहल्ले के लोगो की आँखों में खटकता है | वो हर हाल में इस टापरे को उजाड़ना चहेते हैं | एक बार मनु ने मोहल्ले के कुछ लोगों से सुना भी था - "ये साला कंजर परिवार कहाँ आकर बस गया, इसने सारी कालोनी का standard ख़राब कर रखा है | हमें इसे जैसे - तैसे करके निकाल कर भगा देना चाहिए | मनु इस बात को लेकर आज माता जी से भी बहस कर चूका था | वह किसी भी स्थति में इस परिवार पर अत्याचार सहन करने को तैयार नहीं था | इसी लिए आज वह गुस्सित था |
(मनु के पिता जी अन्दर आते है और बोलते है ...)
पिताजी -  क्यों बे ... बहुत हुआ मोहल्ले वालों का शुभ - चिन्तक ........ क्यों मुंह फुलाए बैठा है ........ त्यौहार के दिन हट नहीं करते .......... चल उठ खाना खाए लेते हैं |
(मनु धीरे से बोलता है) - मुझे भूख नहीं है ...
पिता जी (गुस्से में) - उठता भी है की अभी चांटा लगाऊं ........
मनु - आभी मेरी इच्छा नहीं है ...(तभी माता जी आ जाते है)
माता जी - (मनु को सहलाती हुई) उठ बेटे khan खा लेते हैं .....
(मनु फिर भी नहीं उठता है)
माता जी - चलो जी आप तो खा लो में इसे यहीं खिला देती हूँ |
(माताजी खाना अन्दर लेकर आती है | मनु दिवार का सहारा लिए पलंग पर बैठा है)
माताजी - ले बेटा खाना खा ले, ठंडा हो रहा है ........ त्यौहार के दिन हट नहीं करते ...


मनु (करुण स्वर में) - आपके पडोसी के घर में आज चूल्हा भी नहीं जला आप त्यौहार मना रहे हैं|
धिक्कार है माताजी ......... जब तक ये मिठाइयाँ रजत के घर नहीं पहुंचा आता तब तक में खाना नहीं खाऊंगा |
(मनु के पड़ोस में जो टूटा सा कच्चा मकान है, जिसमें एक विधवा औरत तथा उसका बेटा रजत जो मनु का सहपाठी हैं, व उसकी छोटी बहिन पूजा रहते  हैं, अत्यधिक गरीब परिवार,  औरएक औरत कैसे तीन लोगों का खाना खर्चा और पढाई  वहन कर पाती है, मनु के दादाजी जब जीवित थे, तो उन्हें दो रोटी और दाल हर शाम पहुंचा देते , रजत मनु की क्लास का सर्व- श्रेष्ट छात्र है और गहन  मित्र भी है ..... उसको स्मरण कर मनु की आँखों में आँसू आ जाते हैं ...... वह रोते हुए पुनः बोलता है )
मनु - माता जी जिस रात को दादाजी मरे थे, उस रात उनकी आंखे भी गीली थी, उन्होंने मुझे और रजत को एक कहानी सुनाई थी और मुझे बोला था - "बेटा गरीब लोगों की हमेशा सेवा करनी चाहिए | यह जो गरीब परिवार हमारे बीच बसा हुआ है इसको दाना पानी यहीं के दो दे रहें हैं | तभी से ये गरीब बचे पढने को भी जाने लग गए हैं और होशियार भी हैं " दादाजी ने यह भी कहा था बेटा तुम दोनों सदा साथ रहना  तथा चंपा को कभी भी कपडे और आनाज की जरुरत पड़े तो दे देना "
माताजी (बात काटते हुए) - बेटा वो तो ठीक है लेकिन जब हम लोग इन्हें कुछ खिला - पिलाते हैं, तो ये मोहल्ले वाले हम पर जलते हैं | ये तो इन्हें यहाँ से निकालने  पर उतरे हैं |
मनु (चिल्लाते हुए) - कौन है इस पतिवर को यहाँ से निकालने वाला ......... मेरे सामने आये ......... किसी के बाप की नहीं है यह जमीन ............
(अपने पिता से) पिताजी कुब तक चुप रहोगे ? आपके बॉस इसे निकलना चाहते है, और आप भी इसी साजिस में हैं | (रूककर) आप बोलोगे तो वो आपका स्थानान्तरण करवा देंगे , समय से पहले ऑफिस से नहीं आने देंगे, नहीं इतने से स्वार्थ की खातिर आपको चुप नहीं रहना होगा |
मनु (घर के दरवाजे पर आकर रजत के घर की तरफ देखते हुए बोलता है ) - बहार निकालिए....... देखिये! उस घर में आज दीपावली के दिन भी दीपकों की कतार तो क्या चूल्हा तक भी नहीं जला |
      (माताजी और पिताजी उसे चुप रहने को बोलते हैं लेकिन वह दरवाजे पर खड़े होकर बोलता है ) - हाँ पिताजी हमें सब मालूम है, आपके बॉस बेशर्म हैं, हरामी हैं, मैं तो कहता हूँ कल जब एक्सिडेंट हुआ तुब मर क्यों नहीं गये......... इन्होंने सेठजी को इन लोगों को सामान देने को मना कर दिया |   आज से तीन दिन पहले जो इनके घर के सामने रोड़ - लाईट थी, वह उतरवा दी गई | पानी का नल रोक दिया गया | हाय! इतना अत्याचार ............ इतनी बेबसी से मारे जा रहे हैं ...... अरे मानव हो तुम मानव !
(मनु चिल्लाता हुआ घर से बाहर निकल जाता है, माताजी उसे घसीटते हुए अन्दर लाती है | मनु बहार चला जा हिया और आगे बोलता रहता है ...... मनु की आवाज सुनकर मोहल्ले के कुछ लोग इकट्ठे हो जाते हैं )

                          पर्दा गिरता है----------
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                        पर्दा उठता है

(मनु के पड़ोस का पुराना झुग्गी झोंपड़ियों के  मकान की बहार की चोक में रजत, उसकी माँ और छोटी बहिन एक चिमनी जलाये गुमसुम बैठे हैं, घर के द्वार पर मोहल्ले के कुछ लड़के व एक - आध बड़े लोग वहां झुण्ड में खड़े हैं | मनु के हाथों में एक बर्तन में कुछ मिठाइयाँ है | )
मनु - (चम्पा को वह बर्तन देते हुए) लीजिये आंटी जी आपके द्वार पर भी त्यौहार मानना है | हम अकेले त्यौहार कैसे मना सकते ..........(मनु द्वार की और बढ़ते हुए सब लोगों को बोलता है) - आप सब लोगों को मेरा हाथ जोड़ निवेदन है कि इस गरीब परिवार को में जन्म से ही यहाँ देख रहा हूँ मेरे दादाजी और कुछ बुजुर्ग लोगों ने सदा से इसे पाला - पोसा है | बिचारे असहाय और कहीं जाकर कहाँ बस पाएंगे | मोहल्ले के कुछ लोग स्वार्थी लोग इस टूटे मकान को कालोनी कि छवि के लिए लड़ा के लिए नष्ट कर देना चाहते हैं, इन्हें खूब यातनाएं दी जा रही है, यह जमीन हड़पने कि साजिस भी रची जा रही है | मेरे देखते - देखते पिछले एक सप्ताह में इस घर के सामने कि रोड -  लाइट उतरवा दी गई, बगल में लगे नल को रुकवा दिया गया और आज रसन कि दुकान से सामान देने से भी मना करवा दिया गया | मैं पूछना चाहता हूँ उन लोगों से कि क्या कसूर है इनका ....... जो कि इन्हें इतनी यातनाएं दी जा रही है | आप लोगों ने सोचा कभी कि इस जगह आप होते तो कहाँ तक सहन कर पते ये सब .......
(मनु करुण स्वर में बोलता है ) - आज त्यौहार का दिन है सभी खूब पटाखे जला रहे हैं, फुलझड़ियाँ जलाई जा रही है, हर घर में भांति - भांति के पकवान बनाये गए हैं, मगर इस बेचारे परिवार में चूल्हा भी नहीं जला .......... क्या हमारा फर्ज नहीं बनता ........... मेरे दादाजी को स्मरण करता हूँ, जिन्होंने इस परिवार का पूरा ख्याल रखा, वरना ये यहाँ से कभी के निकल दिए जाते | जब से वो इस दुनिया से चल बसे तभी से इस परिवार रूपी पेड़ के पते पीले पड़ने लग गए और आज स्थति आपके सामने है, मैं सब को आह्वान करता हूँ कि हम सब इस परिवार का ख्याल रखेंगे | आपनी खुशियाँ देंगे और इनके गम को बाँटेंगे |
(सभी बच्चे अपने खूब सारे  पटाखे और फुल-झड़ियाँ  रजत को देते हैं मनु रजत को गले लगता है. और आपने साथ खाना खिलाता है और सभी मिलकर खूब पटाखे जलाते हैं | साथ ही दीपकों की लम्बी क़तर चंपा आंटी के पुराने घर को अब मनमोहक बना देती है | अब चंपा आंटी के घर भी दीपावली का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है |
         एक छोटे से बालक के विद्रोह से एक महँ विध्वंश रुक गया और असहाय परिवार पर मंडरा रहे संकट के बदल ताल गए | चंपा आंटी अब सपरिवार  खुश है |


ले संकल्प . . .

लो आ गया नूतन वर्ष भोर, ले आओ तुम रोली चन्दन
स्नेह प्यार का ले संकल्प , करो नूतन वर्षाभिनंदन
नया सूरज उग आया देखो
नयी किरण है नयी उमंग
नयी कलियाँ हैं नए उपवन की
नया फूल है नारंगी रंग
चिड़िया चहकी कलियाँ महकी, कैसा कलरव हैं कैसा क्रंदन |
राष्ट्र-चेतना का ले संकल्प, करो नूतन वर्षाभिनंदन ||
उषा के शुभ मुर्हुत पर,
भोर-हवन ले पंडित आये,
हिन्द देश के कौने-कौने
खुशहाली के दीप जलाये,
रणवीरों तुम थमा लो तलवार, मातृ-भूमि का है आज रक्षाबंधन|
स्वदेशबली का ले संकल्प, करो नूतन वर्षाभिनंदन ||
हलधरों ने हल उठाया
सैनिकों ने हथियार
अनपढ़ो ने पोथी उठाई
मजदूरों ने औजार
ज्वार से ज्यों उठता सागर, जाग उठा सारा जन-जन|
नव-जागृति का ले संकल्प, करो नूतन वर्षाभिनंदन ||
दलितों का हाथ बांटकर
अनाथों का कष्ट सहो,
हो जाओ तुम पवन से शीतल
स्वच्छ जल से शालीन बहो
फंदा फंसा हैं गले में जिसके, पहना दो उसे कंगन|
सहानुभूति का ले संकल्प, करो नूतन वर्षाभिनंदन ||
सद्भावना का दीप जलाओ,
मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर में
गंगा-यमुना-सरस्वती वर्ग-धाराओं को,
मिला दो उफनते जन-सागर में
एक झोली में भर दो ये भिन्नता के फूल, बांध दो माला से बंधन|
सर्व-एकता का ले संकल्प, करो नूतन वर्षाभिनंदन ||

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

कवि जीवन की साधना ...



         क्या मात्र कल्पना की अपार शक्ति ही कवि का परिचय है? क्या लोक-परलोक के, इस चर-अचर जगत के अच्छे-बुरे लम्हों रुपी मनकोँ को शब्द-माला में पिरोकर हर आम-खास के सामने परोसना मात्र ही कवि का काम है? या फिर इन लम्हों को शब्द रुप देने के अलावा वह इन्हें अपने जीवन में उतारता भी है? कवि की शब्द जाल में इतनी तल्लीनता और तन्मयता, समाज और सांसारिक जगत के साथ कहीं तालमेल बनाकर कदम से कदम मिलाकर चलना तो कहीं किसी अमानुसिकता पर तीक्षण प्रहार कर उसे समूल नष्ट कर डालने का साहस; ये सब सहजता से कैसे हो पाता है? वो मात्र चार पंक्तियों में इतना प्यार घोल देते हैं कि वक्ता या स्रोता दंग रह जाये। ये सब देखकर मेरे अन्तरमन में एक और प्रश्न उठता है कि इतने प्यार भरे लम्हों को इतनी सहजता से एक कविता में संजोने वाली ये महान आत्माएं अपने सांसारिक जीवन में अपने आत्मीय जनों को वास्तव में कितना प्यार दे पाते हैं? और यदि ऐसा प्यार उनको मिलता है तो फिर भी उनको स्वर्ग की तलाश है? हाँ, जहां तक मेरा अनुभव है, मेरी पंक्तियों में जो तन्हाई और बेरुखी है, शायद उससे कई गुणा अधिक वो मेरे यथार्थ जीवन में देखने को मिलेगी। मैँ सोचता हूँ, जिन कवियों ने राधा और कृष्ण के प्यार और आलिंगन को साहित्य में उकेरा है, अवश्य ही उन्हें भी अपने जीवन में ऐसे मौके नसीब हुए होंगे। या फिर मेरी वेदनामयी पंक्तियों की तरह ही जीवन में भी करुण रुदन की दु:खद घङियाँ भी आती होंगी। तब वो उन्हीं से प्रेरित होकर शायद उन्हें अपनी कलम से कागज पर उकेर देते होंगे। इन सब प्रश्नों के उत्तर शायद कवि जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव करके ही पा सकूंगा।

बुधवार, 5 सितंबर 2012

गुरु गोविंद दोउ खड़े . . .

(I)     मेरे गुरु के लिए ...



गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। 
गुरुर्साक्षात्‌ परमब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवैनमः॥ 


  गुरु, शिक्षक, आचार्य, उस्ताद, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते है जो हमें सिखाता है, ज्ञान देता है। इसी महामानव को धन्यवाद देने को, अपनी कृतज्ञता दर्शाने को एक दिन है जो की शिक्षक दिवस के रूप में जाना जाता है। केवल धन दे कर शिक्षा हासिल नहीं होती। अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास , ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है। कई सारी दुविधाये केवल एक विश्वास की 'मेरे गुरु ने सही बताया है' से मिट जाती है।
५ सितम्बर, भारत के द्वितीय राष्ट्रपति , शैक्षिक दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्मदिवस, शिक्षक दिवस के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। ऐसा कह गया है की बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त नहीं होता, "गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही"।
हिंदू पंचांग गुरु पूर्णिमा को गुरु दिवस स्वीकार करते है। विश्व के विभिन्न देश अलग अलग तारीखों में शिक्षक दिवस मानते है।




संत नानकदास बिजकपाठी
               





कबीर के शब्दों में


    संत कबीर जी के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। माता पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है।

शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर उन शिक्षकों को हिंद-युग्म का शत शत प्रणाम जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों की वज़ह से आज हम इस योग्य हुए कि मनुष्य बनने का प्रयास कर सकें। [3] कबीर जी ने गुरु और शिष्य के लिए एक दोहा कहा है कि-

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय  
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।


  • जो राह दिखाई है तुमने 


पदचिन्हों के पीछे-पीछे,
आजीवन चलता जाऊँगा |
जो राह दिखाई है तुमने ,
मैं औरों को  दिखलाऊंगा ||
सूखी डाली को हरियाली , बेजान को जीवनदान दिया |
काले अंधियारे जीवन को , सौ सूरज से धनवान किया ||
परोपकार, भाईचारा,
मानवता, हमको सिखलाई |
सच्चाई की है दी मिसाल ,
है सहानुभूति क्या दिखलाई ||
कान पकड़ उठक- बैठक , थी छड़ियों की बरसात हुयी |
समझ न पाया उस क्षण मैं, अनुशासन की शुरुआत हुयी ||
मुखमंडल पर अंगार कभी ,
आँखों में निश्छल प्यार कभी|
अंतर में माँ की ममता थी,
सोनार कभी, लोहार कभी ||
जीवन को चलते रहना है , लौ इसकी झिलमिल जलती है |
जीवन के हर चौराहे पर, बस कमी तुम्हारी खलती है ||
जीवन की कठिन-सी राहों पर,
आशीष तुम्हारा चाहूँगा|
जो राह दिखाई है तुमने,
मैं औरों को दिखलाऊंगा ||




  • (II) मेरे शिष्यों के लिए 






सुखदेव 'करुण'

हर विद्यार्थी में मौजूद है एक शिक्षक


           आज शिक्षक दिवस है। दिवसों की भीड़ में एक और दिवस! कहने को आज मैं आपका  शिक्षक  हूँ, किंतु सच तो यह है कि जाने-अनजाने न जाने कितनी बार मैंने आपसे शिक्षा ग्रहण की है।कभी किसी के तेजस्वी आत्मविश्वास ने मुझे चमत्कृत कर‍ दिया तो कभी किसी विलक्षण अभिव्यक्ति ने अभिभूत कर दिया । कभी किसी की उज्ज्वल सोच से मेरा चिंतन स्फुरित हो गया तो कभी सम्मानवश लाए आपके नन्हे से उपहार ने मुझे शब्दहीन कर‍ दिया। कक्षा में अध्यापन के अतिरिक्त जब मैं स्वयं को उपदेश देते हुए पाता हूँ तो स्वयं ही लज्जित हो उठता हूँ। मैं कौन हूँ? क्यों दे रहा  हूँ ये प्रवचन? आप लोग मुझे क्यों झेल रहे हैं...

                                                                                                                      सुखदेव 'करुण'                                                               

सोमवार, 30 जुलाई 2012

मेघा . . .


क्यों तङपाते खग मृग को,
हरधर ताक रहा तुम्हारी ओर।
ना गुजारो यूं सावन सूखा,
क्यों घूम रहे हो मेघा ओर-छोर।।
तेरे बिना है मौन तरंगिनी,
निःशब्द है कल-कल झरनों की।
कूक रही कोयल, पपीहा पीहू-पीहू,
कैसी दुर्दशा हो रही है वनों की।।
...ना तोलो तुम पाप-पुण्य को,
कलियुग में यह बोझा तुम्हें ढ़ोना होगा।
हिंसक है नृसंस पापी मानव,
मगर इन पापों को तुम्हें ही धोना होगा।।
लाज रखो तुम इस अचला की,
हो रहा झीना अब परिधान है।
कैसी लपटें उगल रहा अंशुमाली,
यज्ञ-हवन, बस चहुंओर तेरा ही गुणगान है।।
हलधर पर अब रहम् करो तुम,
भर दो ताल-तलैया नदी-नाले।
हलधर की भी गुहार सुनो तुम,
गलज-गरज कर बरसो मेघा हो मतवाले।।


                                     ~ सुखदेव करुण

मंगलवार, 15 मई 2012

जी भर के रोने दो . . .

नहीं जाना मुझे खुशियों की महफिल में,
 आज मुझे बैठने दो तन्हा, यादों में खोने दो।
 खूब हंसा हूँ बाहरी हंसी गम छुपाकर,
 आज फूटने दो ज्वालामुखी गमों की,
 डूबने दो तन्हाई में, जी भर के रोने दो।
 जिन्दगी के हर कदम साथ उठे थे जिनके,
 आज उन्हीं यादों को आँसुओँ से धोने दो।
 क्या पाया है मैनेँ उन बेवफाओं से दिल लगाकर,
 बुझने दो दीप सुनहरे, अंधियारा होने दो,
 डूबने दो तन्हाई में, जी भर के रोने दो।
सजायी थी कंटकों में चलकर भी राहें उनकी फूलों से,
 आज डौली उनकी किसी और को सजाने दो।
 कर लेने दो हमें आत्म-दाह मोहब्बत की आग से,
बनाने दो उन्हें संगीन आशियाने, आबाद उनको होने दो।
 डूबने दो तन्हाई में, जी भर के रोने दो।